सायरी



फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है;
ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है;
अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में;
कलम में शुक्र-- खुदा है कि 'रौशनाई' है|

सख्तियां करता हूं दिल पर गैर से गाफिल हूं मैं;
हाय क्या अच्छी कही जालिम हूं, जाहिल हूं मैं।

चला जाता हूँ हँसता-खेलता मौजे-हवादिस से;
अगर आसानियाँ हों जिन्दगी दुश्वार हो जाये|

उनको सोते हुए देखा था दमे-सुबह कभी;
क्या बताऊं जो इन आंखों ने समां देखा था।

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो।

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना;
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना!


उम्मीदों का फटा पैरहन;
रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है;
तुम से मिलने की कोशिश में;
किस-किस से मिलना पड़ता है!

अब आ गए हैं आप तो आता नहीं है याद;
वर्ना कुछ हम को आप से कहना ज़रूर था!

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में;
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में|
मयखाने की इज्जत का सवाल था जनाब;
पास से गुजरे तो थोडा लडख़ड़ा दिए!

चालाकी कहाँ मिलती है, मुझे भी बता दो दोस्तों;
हर कोई ठग ले जाता है, जरा सा मीठा बोल कर!

मेरे क़त्ल की कोशिश तो उनकी निगाहों ने की थी;
पर अदालत ने उन्हें हथियार मानने से इनकार कर दिया!

आज जिस्म में जान है तो देखते नही हैं लोग;
जब रूह निकल जाएगी तो कफन हटा हटा कर देखेंगे लोग!

कोई सुलह करा दे जिदंगी की उलझनों से;
बड़ी तलब लगी है आज मुस्कुराने की!
बचा लिया मुझे तूफां की मौज ने वर्ना;
किनारे वाले सफीना मेरा डुबो देते।

अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़;
उमर गुजरी है उस की याद का नशा किये हुए।

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम;
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।

गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं;
मैं आ गया हूँ, बता इंतज़ाम क्या क्या हैं;
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं;
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है।

गर जिंदगी में मिल गए फिर इत्तेफ़ाक़ से;
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम।
 
सायरी सायरी Reviewed by Unknown on July 13, 2017 Rating: 5

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